|| सत्तगुरवे नमः ||

|| जय जय जय सत्तगुरु शरणम् ||
|| जय जय जय सत्तराम शरणम् ||

सत्तगुरु वन्दना
जय जय जय गुरू सत्त हमारे ।। टेक ।।
तेरी शरण में आया स्वामी, करहु कृपा हे अन्तरजामी ।
जनम मरन दुख संकट टारे ।। टेक ।।
सत्तहि सुकृत मुनिन्द्र कबीरा, जय करूणामय हरू मम पीरा ।
जगत कोटि खल कुमति सुधारे ।। टेक ।।
हरिमाया बस जगत भूलाया, चौरासी भरमत धरि काया ।
मन ईच्छा से सब जग हारे ।। टेक ।।
जन जगदीशे दर्शन दीजे, विषय विकार हरन प्रभु कीजे ।
बार बार नित करत पुकारे ।। टेक ।।

|| सत्तगुरवे नमः ||

माया ब्रम्ह जीव भवसागर, राम नाम नहीं भाई ।
माया सगुन नाम जो सुमिरे, तासो मुक्ति न पाई ।।
निर्गुन ब्रम्ह के नाम ओंम है, निरंजन कहलाई ।
सोहं नाम जीव का जानो जनम मरन न जाई ।।
माया ब्रम्ह जीव का स्वामी, सत्तराम कहलाई ।
परम दयालु परम पुरूषोत्तम, आवागमन छुड़ाई ।।
कृत्रिम धोखा राम भावना, दुख जगदीश न जाई ।

|| सत्तगुरवे नमः ||

|| राम नाम आधी रती, पापन कोटि पहार ||
|| बलिहारी वह नाम की, पाप होत जरी छार ||

सत्तराम पंथ के संस्थापक

जगदीश दाश जी लाल संत पारखी गुरु, सत्तराम बाबा
प्राकट्य स्थल त्रिलोका हाता (सत्तराम पुर) पोस्ट लकड़ी दरगाह, वाया मीरगंज जिला सिवान, बिहार (भारत)
भादो कृष्ण पंचमी संवत 1969
1 सितम्बर 1912
समाधि स्थल - सत्तराम पुर महैचा वाया मीरगंज जिला गोपालगंज बिहार (भारत)
05/05/1988
कार्य क्षेत्र - सम्पूर्ण विश्व
सत्त राम पंथ के : -
संस्थापक- जगदीश दास जी सत्त गुरु या पारखी गुरु, लाल संत मत (गुप्तमत)
गुरु- पारखी
पुरुष- सत्तपुरुष, सत्तराम जी, पार ब्रम्ह
लोक- सत्त लोक
चाल- सत्तो गुणी
मार्ग- प्रवृति
ज्ञेय- पारब्रम्ह
ध्येय- सत्त लोक प्राप्ति( सदा-सर्वदा के लिए मुक्ति)
साधक- जीव
साधन- सुरत
साध्य- सत्त राम नाम
सिद्धी- सत्त लोक प्राप्ति
आशय- सत्त गुरु या पारखी गुरु से उपदेश लेकर गुरु के आदेशानुसार, अज्ञान, ज्ञान, विज्ञान से उपर उठकर न्यान यानि लोकमत, बेदमत, संतमत से उपर उठकर गुप्त मत के अनुसार एक पार ब्रम्ह से ही सकल सुख की चाहना करना । पतिवर्त धर्म के ऐसा ।
शब्द कसौटी- सत, सत्य, सत्, सत्त
बुझ- मै कौन हूँ, कहां से आया हूँ, क्यों आया हूँ, कहां जाना है, अब क्या करू, शरण केही जाउ, ज्ञान ध्यान मत नाना है।

सत्तराम पंथ के मुख्य उद्देश्य

समाज में धार्मिक समानता और मानव एकता का प्रचार

अंधविश्वास, पाखंड और जातिवाद का विरोध
विजति, परजाति से ऊपर उठकर स्वजाति के भाव से जीवन व्यतीत करना

सत्तसंग, साधना, और शब्द सूरत योग द्वार आत्मिक उन्नति

गरीबों, जरूरतमंदों और वंचितों की सेवा और उन्नति

सत्तराम पंथ: सत्तसंग, सेवा, आतमपूजा और साधना का मार्ग

सत्तराम पंथ एक आध्यात्मिक और सामाजिक चेतना का आंदोलन है, जिसकी स्थापना सत्तराम बाबा ने की है। यह पंथ न केवल पारब्रह्म की सच्ची भक्ति का संदेश देता है, बल्कि मानवता, समानता और करुणा पर आधारित जीवन जीने की प्रेरणा भी देता है।

सत्तराम बाबा का विश्वास था कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसका वास्तविक उद्देश्य मनुष्य के भीतर पारब्रह्म की भक्ति जगाना और समाज में नैतिकता का प्रसार करना है। इसी सोच को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने "सत्तराम पंथ" की नींव रखी — एक ऐसा पंथ जो न जात-पात मानता है, न ऊँच-नीच; केवल सत्तसंग और प्रेम को पारब्रह्म को प्राप्त करने का मार्ग मानता है।

"सत्तराम" शब्द दो मूल्यों को जोड़ता है – सत्त (Satt) और राम (जो पारब्रह्म का प्रतीक है)। यह नाम अपने-आप में पंथ के उद्देश्य को दर्शाता है:

सत्त ही पारब्रह्म का विशेषण है और राम विशेष्य है, और सुमिरन ही सच्ची सेवा है।

आज सत्तराम पंथ के अनुयायी देश के विभिन्न हिस्सों में इस विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं। सत्तराम बाबा के वचनों को वे जीवन में उतारते हुए समाज में शांति, समरसता और सद्भाव फैलाने का कार्य कर रहे हैं।

Vision and mission

दृष्टिकोण

"एक ऐसे समाज की स्थापना करना जहाँ हर व्यक्ति सत्तसंग, करुणा और भक्ति के मार्ग पर चलकर पारब्रह्म की भक्ति प्राप्त करे और मानवता की सेवा को अपना धर्म माने।"

मिशन

  • समाज में समानता, एकता और आध्यात्मिक जागरूकता का प्रसार करना।
  • सत्तराम बाबा की उपदेशो के माध्यम से भेदभाव, जातिवाद और अंधविश्वास का अंत करना।
  • सत्तसंग, सेवा और साधना के द्वारा लोगों को सच्चे धर्म के मार्ग पर प्रेरित करना।
  • शिक्षा, भक्ति और समाज सेवा के माध्यम से एक नैतिक, शांतिपूर्ण और करुणामय समाज की रचना करना।
  • युवाओं को सच्चे जीवन मूल्यों, आत्म-संयम और करुणा की ओर उन्मुख करना।

    वार्गीक क्लासिकल सत्तसंग का प्रचार-प्रसार

  • जिसमें लोकमत, वेदमत, संतमत और गुप्तमत अर्थात् सत्तसंग के चारों दर्ज़ो का वर्णन है। इसको पढ़ समझ लेने पर धार्मिक वाद-विवाद तथा राग द्वेष छुट जाता है। जैसे साहित्य के दर्जे को सब कोई जानते हैं, तो वाद-विवाद ऊँच-नीच दर्जा का नहीं है। अपने-अपने दर्जे में पढ़ते पढ़ाते हैं।
  • चारों दर्जा का अमूल्य सत्तसंग वार्गिक (क्लासिकल) व्याख्या है। जिसको हर एक व्यक्ति पढ् सुनकर सतसंग के चारों दजों का सहज में ज्ञान प्राप्त कर सकता है। किसी के भ्रम में न पड़ सकता है, स्वयं पारखी हो जाता है। - जगदीश दास जी
कार्यक्रम

सत्तसंग सम्बन्धी कार्यक्रम


समाधि स्थल कार्यक्रम

  • प्रत्येक रविवार (दिन में)
  • मकर संक्रान्ति (दिन में)
  • May 05 समाधि दिवस (रात में)
  • भादो कृष्ण पंचमी - प्राकट्य दिवस के रूप में (दिन में)
  • कार्तिक प्रबोधनी द्वादशी( रात)

प्राकट्य स्थल त्रिलोका हाता (सत्तराम पुर) कार्यक्रम

  • मासिक कार्यक्रम प्रत्येक माह दूसरे शनिवार को (दिन में)
  • वार्षिक कार्यक्रम बैशाख पूर्णिमा (रात में)
प्रस्तावना

भूमिका... 1

वन्दौं सत्तगुरू चरण, बिनवों बारम्बार ।
करहूँ कृपा निजशरण लखि, जन जगदीश पुकार ॥
कर्मभक्ति नहीं ज्ञान है, नहीं विद्या नहीं योग ।
करूणामय करूणा करहूँ, आधि व्याधि छुटि रोग ॥
सत्त, सुकृत, मुनिन्द्र तूहीं, करूणा सिन्धु कबीर ।
हिन्दु के सत्तगुरू तू ही, मुसलमान के पीर ।।
बार-बार वर माँगिहौं, मन इच्छा न फँसाय ।
सत्तनाम सुमिरन करूँ, निशदिन सुरत लगाय ।।
सो०- जन जगदीश विचार, रत्नामृत अब कथन करूँ ।
आस भरोस तुम्हार, सत्तसंग संसार में ॥

भूमिका... 2

चरन सत्तगुरू बन्दो निशदिन सत्तराम गुन गाऊँ ।
लोक, वेद अरू संत गुप्त मत, दर्जा चार जनाऊँ ।।
सत्तसंग रत्नामृत में कछु, पक्षपात नहिं राखों ।
रामचरित मानस अरू बीजक, आदिक मर्महि भाखों ।।
नहीं विद्या, नहीं पिंगल जानू, नहिं व्याकरने ज्ञाना ।
पढ़ा न नव-छव, चार अठारह, सिर्फ राम गुन गाना ।।
भूल चूक जो होय ग्रन्थ में, संशोधन कर लीजे ।
ज्ञेय ध्येय को समझ-बूझकर, साधन निज-निज कीजे ॥
निज प्रबोध अरू परहित लागि, सुमिरन भजन बनायो ।
मेरा मुझमें कछु नहीं भाई, सब कुछ गुरूहिं बतायो
बिना सत्तगुरू, बिना पारखी, सत्त नाम नहिं जाने ।
जन जगदीश शीश करू अर्पन, बिनु जाने नहि माने

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